संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलस्तीन पर भारत ने अपनी विदेश नीति अचानक क्यों बदली-भीम सिंह
उन्होंने भारत के राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि वे तुरंत अपनी संवैधानिक शक्ति प्रयोग करके संसद की एक तत्काल बैठक बुलाएं, जिसमें भारत सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि कैसे, किन मजबूरियों के कारण या अमेरिका के दबाव में आकर भारत के प्रतिनिधि ने फिलस्तीन पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में हो रही बहस में हिस्सा क्यों नहीं लिया और इजरायल के पिट्ठू देशों के साथ मिलकर फिलस्तीन के विषय पर अपना मतदान से बायकाट कर दिया। यह भी संयुक्त राष्ट्र के रिकार्ड में है कि तीन दिन पहले इसी विषय में सुरक्षा परिषद में भारत ने इजरायल का जमकर विरोध किया था और चार दिन में ही भारत ने अपनी फिलस्तीन के प्रति विदेश नीति को क्यों, किसके कहने पर और किसके इशारे से महासभा में मतदान ही नहीं किया। जिन 13 देशों के साथ भारत ने मिलकर मतदान देने से बायकाट किया, जिससे मोदी सरकार की तीन दिन में भारत की विदेश नीति ही बदल गयी और इतनी तेजी के साथ चार दिन के अंदर भारत इजरायल का समर्थक बन गया।
उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि भारत ने मजबूरी से अपने विदेश मंत्री को एक गुप्त संदेश के साथ व्हाइट हाऊस, अमेरिका भेजा और अमेरिका को भरोसा दिलाया गया कि आज की मोदी सरकार इजरायल के विषय पर भी अमेरिका के साथ है। यही कारण था कि भारत ने तीन दिन में ही अपनी फिलस्तीन के प्रति विदेश नीति को अचानक बदल दिया और अमेरिकी शासन को स्पष्ट संदेश दे दिया गया कि कांग्रेस की फिलस्तीन के प्रति चल रही विदेश नीति से भारत की मोदी सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। यही कारण था कि भारत ने अमेरिका का आदेश माना और इजरायल को गले लगाकर कह दिया ‘गुड बाय‘ फिलस्तीन को।
प्रो. भीम सिंह ने भारत-फिलस्तीन मैत्री समिति व पैंथर्स पार्टी का संयुक्त राष्ट्रसंघ में गैरसरकारी संगठन की बैठकों में प्रतिनिधित्व करते हुए फिलस्तीन पर संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के इजरायली उल्लंघन का विरोध किया है। उन्होंने सभी मित्रों को फिलस्तीन की विदेश नीति से अवगत कराया, जिसका पालन अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत के विदेश मंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में किया था।
प्रो. भीम सिंह ने घोषणा की कि भारत-फिलस्तीन मैत्री समिति, जो यूएनओ के एनजीओ सम्मेलन द्वारा भी मान्यताप्राप्त है, इस मुद्दे पर यरूशलम, राम अल्लाह और यहां तक कि उन फिलस्तीनी लोगों के समर्थन में नई दिल्ली में एक तत्काल बैठक आयोजित करेगी। 1948 से गाजा पट्टी में पीड़ित फिलस्तीनी शरणार्थी हैं, जिनकी गाजा में अधिकांश आबादी है। गाजा को फिलस्तीन से अलग नहीं किया जा सकता और न ही इजरायल फिलस्तीन को जबर्दस्ती या अन्तर्राष्ट्रीय कानून के विरुद्ध अपनी तानाशाही चला सकता है।